नया वर्ष, नयी उम्मीद और आशा की नई किरणें लेकर आ रहा है। उठिए, आगे बढ़िए और बाहें फैलाकर नववर्ष का स्वागत करिए। यह वर्ष आपका नसीब बदल सकता है। आपके प्रयास आपकी मंजिल को और नजदीक ला सकते हैं, लेकिन जो बीत रहा है, उस अतीत को मत भूलिए। उससे सबक लीजिए। वर्ष 2022 हमारे लिए एक ऐतिहासिक वर्ष रहा है। आजादी के इस अमृत महोत्सव में पूरे देश में उत्सव का माहौल बनाया गया, लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि आज हम जिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, वह गंभीर चिंतन का विषय है। For more :-
हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने जिस नए भारत के निर्माण का कार्य आजादी के बाद शुरू किया था, उसकी बुनियाद में आम आदमी था, अंतिम आदमी था। विकास का हर कदम उस अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर उठाया जाना था। जिसमें बड़े पैमाने पर जनभागीदारी सुनिश्चित की गई और उसका उद्देश्य यह था कि सत्य और अहिंसा की बुनियाद पर आम आदमी को संगठित करके अंग्रेजों से जो स्वराज हासिल किया जाएगा, वह स्थायी स्वराज होगा। वह स्वराज किसी एक जाति, एक समूह, एक धर्म या आर्थिक समृद्धि वाले एक समूह का नहीं होगा, बल्कि देश के हरेक नागरिक का होगा। लेकिन जो भावना, जो उमंग, जो उत्साह होना चाहिए, वह आम लोगों में आज नहीं दिखता। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बेरोजगारी चरम पर है। वोट के लिए समाज बांटा जा रहा है। सामाजिक समरसता खत्म होती जा रही है।
और सबसे बड़ी बात यह है कि बालिग मताधिकार के जरिये आम लोगों को जो अधिकार दिया गया था कि वह सत्ता का नियंत्रक होगा, वह आज याचक बन चुका है और राज्य सत्ता द्वारा नियंत्रित हो रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि हमारे पूर्वजों ने क्या मुट्ठी भर लोगों के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी? आखिर आम नागरिक लोकतंत्र में कब निर्णायक बनेगा? हमारी सभी से अपील है कि जिस लोकतंत्र की अवधारणा लेकर हम आगे बढ़े थे, उसके लोक को जागृत और संगठित किया जाए। हम चाहते हैं कि वह याचक न रहे, बल्कि इस व्यवस्था का नियंत्रक बने।
आज देश में एक तरफ अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है। गांधी जी ने कहा था- गांव की बुनियाद पर ही स्वराज की नई रचना होगी, जिसमें गांवों का पुनर्निर्माण किया जाएगा। गांवों की आर्थिक व राजनीतिक स्वायत्तता होगी और सांस्कृतिक विकास होगा। इस तरह एक नया भारत बनेगा, जो स्वायत्त ग्राम गणराज्यों का एक महासंघ होगा। अफसोस, हम गांधी के मार्ग पर नहीं चल सके, बल्कि अब तो उनके कद को छोटा करने की भी कुत्सित कोशिश होने लगी है। हमें ऐसी मानसिकता से बाहर निकलना है। हमें एक ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करनी है जिससे न केवल देश का विकास हो, बल्कि अंतिम आदमी को नियंत्रक बनने का वास्तविक हक भी हासिल हो। इसलिए जो कल बीत गया, उससे सीखो। जो आज है, उसमे जिओ और आने वाले कल से आशा रखो। इन्हीं विचारों के साथ हम चाहते हैं कि नूतन वर्ष 2023 में सहस्र सफलताओं से आपका जीवन पुष्पित और पल्लवित हो।
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